Papmochani Ekadashi Katha - पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
जय श्री कृष्ण भक्तो, हमारे हिन्दू धर्म मे एकादशी व्रत की महिमा अलौकिक है, ये व्रत करनेसे भगवान विष्णु की प्रसन्ता के साथ अपने सभी पापो का नाश और सभी प्रकारके भौतिक सुख और समृद्धि देने वाला ये व्रत है। आइए जानते है आजके इस पोस्ट मे पापमोचनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा (Papmochani ekadashi vrat katha) पूरी सुनाने जा रहे है।
भक्तो हमारे हिन्दू शाश्त्रो में बताया गया है की कोई भी व्रत या यात्रा करे तो पहले उनका महात्मय और कथा जरूर सुननी चाहिए, जिनसे यात्रा स्थल और व्रत का फल अधिक मिलता है। आइए जानते है फाल्गुन मास के चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली पापमोचनी एकादशी के महात्मय और व्रत कथा (Papmochani ekadashi katha) के बारेमे।
पापमोचनी एकादशी की महात्मय : Importance of Papmochani Ekadashi
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा : हे मधुसूदन! आपने फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात आमलकी एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बताया। हे माधव! चैत्र माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मेरी बढ़ती हुई जिज्ञासा को शांत करें।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक बार की बात है, पृथ्वीपति राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से यही प्रश्न किया था, जो तुमने मुझसे किया है। अतः जो कुछ भी ऋषि लोमश ने राजा मान्धाता को बतलाया, वही मैं तुमसे कह रहा हूँ।
राजा मान्धाता ने धर्म के गुह्यतम रहस्यों के ज्ञाता महर्षि लोमश से पूछा: हे ऋषिश्रेष्ठ! मनुष्य के पापों का मोचन किस प्रकार सम्भव है? कृपा कर कोई ऐसा सरल उपाय बतायें, जिससे सभी को सहज ही पापों से छुटकारा मिल जाए।
लोमश
मुनि ने कहा: हे राजन! इस पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट
हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण व पठन से एक हजार गौदान करने का फल
प्राप्त होता है। इस उपवास के करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, स्वर्ण
चुराने वाले, मद्यपान करने वाले, अगम्या गमन करने वाले आदि भयंकर पाप भी
नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
पापमोचनी एकादशी कथा! (Papmochani Ekadashi Katha)
महर्षि लोमश ने कहा: हे नृपति! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचिनी एकादशी है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें इस व्रत की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का मौसम रहता था, अर्थात उस जगह सदा नाना प्रकार के पुष्प खिले रहते थे। कभी गन्धर्व कन्याएँ विहार किया करती थीं, कभी देवेन्द्र अन्य देवताओं के साथ क्रीड़ा किया करते थे।
उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे। वे शिवभक्त थे। एक दिन मञ्जुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित कर उनकी निकटता का लाभ उठाने की चेष्टा की, इसलिए वह कुछ दूरी पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी।
उसी समय शिव भक्त महर्षि मेधावी को कामदेव भी जीतने का प्रयास करने लगे। कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रू का धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यन्चा बनाई और उसके नेत्रों को मञ्जुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव अपने शत्रुभक्त को जीतने को तैयार हुआ।
उस समय महर्षि मेधावी भी युवावस्था में थे और काफी हृष्ट-पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दण्ड धारण कर रखा था। वे दूसरे कामदेव के समान प्रतीत हो रहे थे। उस मुनि को देखकर कामदेव के वश में हुई मञ्जुघोषा ने धीरे-धीरे मधुर वाणी से वीणा पर गायन शुरू किया तो महर्षि मेधावी भी मञ्जुघोषा के मधुर गाने पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गए। वह अप्सरा मेधावी मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर उनसे आलिङ्गन करने लगी।
महर्षि मेधावी उसके सौन्दर्य पर मोहित होकर शिव रहस्य को भूल गए और काम के वशीभूत होकर उसके साथ रमण करने लगे।
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काम के वशीभूत होने के कारण मुनि को उस समय दिन-रात का कुछ भी ज्ञान न रहा और काफी समय तक वे रमण करते रहे। तदुपरान्त मञ्जुघोषा उस मुनि से बोली: हे ऋषिवर! अब मुझे बहुत समय हो गया है, अतः स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये।
अप्सरा की बात सुनकर ऋषि ने कहा: हे मोहिनी! सन्ध्या को तो आयी हो, प्रातःकाल होने पर चली जाना।
ऋषि के ऐसे वचनों को सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी। इसी प्रकार दोनों ने साथ-साथ बहुत समय बिताया।
मञ्जुघोषा ने एक दिन ऋषि से कहा: हे विप्र! अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये।
मुनि ने इस बार भी वही कहा: हे रूपसी! अभी ज्यादा समय व्यतीत नहीं हुआ है, कुछ समय और ठहरो।
मुनि की बात सुन अप्सरा ने कहा: हे ऋषिवर! आपकी रात तो बहुत लम्बी है। आप स्वयं ही सोचिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया। अब और ज्यादा समय तक ठहरना क्या उचित है?
अप्सरा की बात सुन मुनि को समय का बोध हुआ और वह गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगे। जब उन्हें समय का ज्ञान हुआ कि उन्हें रमण करते सत्तावन (57) वर्ष व्यतीत हो चुके हैं तो उस अप्सरा को वह काल का रूप समझने लगे।
इतना ज्यादा समय भोग-विलास में व्यर्थ चला जाने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। अब वह भयंकर क्रोध में जलते हुए उस तप नाश करने वाली अप्सरा की तरफ भृकुटी तानकर देखने लगे। क्रोध से उनके अधर काँपने लगे और इन्द्रियाँ बेकाबू होने लगीं।
क्रोध से थरथराते स्वर में मुनि ने उस अप्सरा से कहा: मेरे तप को नष्ट करने वाली दुष्टा! तू महा पापिन और बहुत ही दुराचारिणी है, तुझ पर धिक्कार है। अब तू मेरे श्राप से पिशाचिनी बन जा।
मुनि के क्रोधयुक्त श्राप से वह अप्सरा पिशाचिनी बन गई। यह देख वह व्यथित होकर बोली: हे ऋषिवर! अब मुझ पर क्रोध त्यागकर प्रसन्न होइए और कृपा करके बताइये कि इस शाप का निवारण किस प्रकार होगा? विद्वानों ने कहा है, साधुओं की सङ्गत अच्छा फल देने वाली होती है और आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष व्यतीत हुए हैं, अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइए, अन्यथा लोग कहेंगे कि एक पुण्य आत्मा के साथ रहने पर मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़ा।
मञ्जुघोषा की बात सुनकर मुनि को अपने क्रोध पर अत्यन्त ग्लानि हुई साथ ही अपनी अपकीर्ति का भय भी हुआ, अतः पिशाचिनी बनी मञ्जुघोषा से मुनि ने कहा: तूने मेरा बड़ा बुरा किया है, किन्तु फिर भी मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति का उपाय बतलाता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम पापमोचिनी है। उस एकादशी का उपवास करने से तेरी पिशाचिनी की देह से मुक्ति हो जाएगी।
ऐसा कहकर मुनि ने उसको व्रत का सब विधान समझा दिया। फिर अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये।
च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र मेधावी को देखकर कहा: हे पुत्र! ऐसा क्या किया है तूने कि तेरे सभी तप नष्ट हो गए हैं? जिससे तुम्हारा समस्त तेज मलिन हो गया है?
मेधावी मुनि ने लज्जा से अपना सिर झुकाकर कहा: पिताश्री! मैंने एक अप्सरा से रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है। इसी पाप के कारण सम्भवतः मेरा सारा तेज और मेरे तप नष्ट हो गए हैं। कृपा करके आप इस पाप से छूटने का उपाय बतलाइये।
ऋषि ने कहा: हे पुत्र! तुम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधि तथा भक्तिपूर्वक उपवास करो, इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।
अपने पिता च्यवन ऋषि के वचनों को सुनकर मेधावी मुनि ने पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। उसके प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए।
मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी का उपवास करने से पिशाचिनी की देह से छूट गई और पुनः अपना सुन्दर रूप धारण कर स्वर्गलोक चली गई।
समापन -
भक्तो, हमे आशा है की आपको हमारी ये पोस्ट मे पापमोचनी एकादशी की व्रत कथा और महत्व के बारेमे सब हमने विस्तारसे बताया है तो ये लेख आपको पसंद आया होगी, यदि अभी आपके मन मे इस पोस्ट को लेकर आप चाहते है की इसमे कुछ सुधार की जरूरत है, तो आप नीचे comments मे लिख सकते है। आपके इस सुजाव को हम तुरंत अनुकरण करके पोस्ट मे सुधार करेंगे। यदि आपको हमारा यह पोस्ट “Papmochani Ekadashi katha” अच्छा लगा हो या इससे आपको कुछ सीखने को मिला हो तो, अपनी प्रसनता और उत्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Media जैसे की Facebook, Twitter, Instagram और Whatsapp इत्यादिक पर Share जरूर कीजिए।
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