वैकुण्ठ एकादशी व्रत कथा और व्रत विधि - Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha and Vidhi - Today's Ekadashi

वैकुण्ठ एकादशी व्रत कथा और व्रत विधि - Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha.

जय श्री कृष्ण भक्तो, आज अगर वैकुण्ठ एकादशी का व्रत रखते है और व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते है तो आपको वैकुण्ठ एकादशी की कथा और व्रत की विधि के बारेमे जानना जरूरी है।  आइये आज हम आपको वैकुण्ठ एकादशी की कथा (Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha) और व्रत की विधि के बारेमे बताते है। 

वैकुण्ठ एकादशी व्रत कथा और व्रत विधि - Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha and Vidhi - Today's Ekadashi

Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha - वैकुण्ठ एकादशी की कथा 

एक समय की बात है, गोकुल नाम के नगर में एक प्रतापी और गुणी राजा राज्य करता था।  राजा का नाम वैखानस था। वह अपनी प्रजा का विशेष ख्याल रखता था और प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। प्रजा भी राजा की ओर से मिलने वाले प्यार से बहुत खुश थी। राजा के राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे।  

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एकबार राजा ने स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं।  प्रातः होते ही वह अपने स्वप्न के बारे में विद्वान ब्राह्मणों को बताया और राजा ने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगत देखा है।  उन्होंने मुझे से कहा कि हे पुत्र मुझे नरक से मुक्त कराओ।  जब से मैंने यह शब्द सुना हूं, तब से मैं बेचैन हूं।  

ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। वे आपकी समस्या का हल जरूर निकालेंगें।  यह सुन राजा पर्वत ऋषि के आश्रम गए और साष्टांग दंडवत करते हुए मुनि को अपनी पूरी दास्तान सुनाई।

राजा का दुःख सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और राजा के पिता का भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के चलते उन्हें नरक जाना पड़ा।

राजा द्वारा उपाय पूंछने पर मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी (वैकुण्ठ एकादशी) का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को समर्पित करने का संकल्प कर दें। इससे तुम्हारे पिता की नरक से अवश्य मुक्ति होगी। 

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राजा ने सपरिवार मार्घशीर्ष  एकादशी (जिसे वैकुण्ठ एकादशी के नामसे जाना जाता है) का व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया। पूरी रात्रि को भगवान विष्णु के नाम के कीर्तन भक्ति में जागरण किया। व्रत के पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग को चले गए। 

वैकुण्ठ एकादशी पूजा विधि - Puja Vidhi

वैकुण्ठ एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा सुबह और शाम की जाती है। यही पूजा अगले दिन यानी द्वादशी पर भी की जाती है।

  • एकादशी के दिन सुबह व्रह्म मुहूर्त में जागके स्नानादिक करके, पूजा स्थल/मंदिर की सफाई करे। 
  • उसके बाद पूजा स्थल पर गंगाजल छिडककर पवित्र करे तथा भगवान गणेश, विष्णु और मां लक्ष्मी को गंगाजल से स्नान करवाए। 
  • भगवान विष्णु की धूप, दीप तथा चंदन से उनकी पूजा की जानी चाहिए।
  • अब भगवान विष्णु को रोली, चंदन, अक्षत और तुलसी दल आदि अर्पित करें  
  • इस दिन भगवत गीता व श्री सुक्त का पाठ किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु को कमल के फूल अतिप्रिय हैं। इसलिए जो भक्त कमल के फूल से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं वह वैकुंठ धाम को प्राप्त करते हैं। 
  • इस दिन खिचड़ी बनाकर और घी व आम का अचार का भोग लगाकर खुद भी वही प्रसाद रूप में खाते हैं। 
  • भगवान को भोग लगाकर गणेश जी की आरती करें। फिर विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की आरती करके प्रसाद वितरण करें।

समापन - 

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