मोहिनी एकादशी व्रत कथा एवं पुजा विधि | Mohini Ekadashi Katha and Importantce - Today Ekadashi

Mohini Ekadashi Vrat Katha - मोहिनी एकादशी व्रत कथा

जय श्री कृष्ण भक्तो, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान में यह में के महीने में आती है। आइए जानते है आजके इस पोस्ट मे मोहिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा (Mohini ekadashi vrat katha)और पुजा विधि और महत्व के बारेम पूरी जानकारी। 

भक्तो हमारे हिन्दू शाश्त्रो में बताया गया है की कोई भी व्रत या यात्रा करे तो पहले उनका महात्मय और कथा जरूर सुननी चाहिए, जिनसे यात्रा स्थल और व्रत का फल अधिक मिलता है। आइए जानते है वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली मोहिनी एकादशी के महात्मय और व्रत कथा (Mohini ekadashi vrat katha) के बारेमे।  

Mohini Ekadashi ka Mahatva - मोहिनी एकादशी का महत्व

मोहिनी एकादशी व्रत कथा एवं पुजा विधि  | Mohini Ekadashi Katha and Importantce - Today Ekadashi

मोहिनी एकादशी का व्रत व पूजन करने से भगवान विष्णु की कृपा से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती हैं।

Mohini Ekadashi Katha - मोहिनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने श्रीहरि भगवान कृष्ण से वैशाख माह में आने वाली एकदाशी के महत्व और इसके बारे में पूछा। 

युधिष्ठिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीहरि ने कहा ‘हे धर्मपुत्र आज से अनेक वर्षों पूर्व इस एकादशी के विषय में जो कथा वशिष्ठ मुनि ने प्रभु रामचंद्र जी को सुनाई थी उसी का वर्णन मैं करता हूं, ध्यानपूर्वक सुनना’। ये कहकर श्रीहरि ने मोहिनी एकादशी व्रत कथा का प्रारंभ किया।

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एक बार प्रभु श्री रामचंद्र जी ने गुरु वशिष्ठ मुनि से बड़े ही विनम्रता पूर्वक पूछा, हे मुनिवर आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके प्रभाव से समस्त पापों और दुखों से मुक्ति प्राप्त हो सके। 

भगवान राम को संबोधित करते हुए वशिष्ठ मुनि ने कहा, हे राम आपका प्रिय नाम समस्त प्राणियों के दुखों का नाश करता है लेकिन फिर भी आपने जनकल्याण के लिए ये प्रश्न पूछा है, जो कि प्रशंसनीय है। 

वशिष्ठ मुनि ने बताया सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की नगरी है, जहां चंद्रवंश में उत्पन्न सत्यप्रिज्ञ धृतिमान नामक राजा राज करते थे। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन्य धान से परिपूर्ण और समृद्धशाली था। उसका नाम था धर्मपाल, वह सदा पुण्य कर्मों में ही लगा रहता था। दूसरों के लिए कुआं, मठ बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था। भगवान श्री विष्णु की भक्ति में वह सदा लीन रहता था, उसके पांच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत व धृष्टबुद्धि, धृष्टबुद्धि पांचवा पुत्र था। 

लेकिन दुर्भाग्य से उनका पांचवा पुत्र धृष्टबुद्धि अपने नाम के अनुसार ही अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह बड़े बड़े पापों में संलग्न रहता था। वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। उसकी बुद्धि ना तो देवी देवताओं के पूजन में लगती थी और ना ही ब्राम्हणों के सत्कार में, वह अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बर्बाद किया करता था। एक दिन वह एक वैश्या के गले में हांथ डाले चौराहे पर देखा गया। इसे देख पिता ने उसे घर से बाहर निकाल दिया और लोगों ने भी उसका परित्याग कर दिया।

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अब वह दिन रात अत्यंत शोक और चिंतित होकर इधर उधर भटकने लगा। एक दिन वह वैशाख के महीने में महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम जा पहुंचा। महर्षि कौण्डिन्य गंगा से स्नान करके आए थे। धृष्टबुद्धि मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, हे मुनिवर मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य प्रभाव से मेरे कष्टों का नाश हो सके और मैं इस असहाय पीड़ा से मुक्त हो सकूं। महर्षि कौडिन्य ने बताया वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष में मोहिनी नामक प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो।

धृष्टबुद्धि ने महर्षि कौण्डिन्य के कथानुसार मोहिनी एकादशी पर विधि विधान से व्रत किया और उस व्रत के प्रभाव से वह निष्पाप हो गया। तथा अंत में वह दिव्य देह धारण कर गरुण पर सवार होकर विष्णुधाम चला गया।

मोहिनी एकादशी की पुजा विधि - 

मोहिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठे। दैनिक कार्यों से निवृत होकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद पूजा के लिए एक चौकी रखें। इसमें पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। 

दीपक जलाकर भगवान के समक्ष हाथ जोड़ें और व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को  पीले फूल, फल, पंचामृत, तुलसी, धूप, दीप, गंध, अक्षत, चंदन, रोली आदि अर्पित करें।  

ध्यान रहे एकादशी पूजा करते समय भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते जरूर चढ़ाएं। तुलसी पत्ता के बिना भगवान विष्णु की पूजा संपन्न नहीं होती। इसके बाद मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़े और भगवान श्री हरि विष्णु की आरती करें। 

आरती के बाद हाथ जोड़कर भगवान से क्षमायाचना करें। इसके बाद परिवार के लोगों में प्रसाद बाटें। पूरे दिन व्रत रखें या फलाहार रहें। अगले दिन सुबह स्नानादि के बाद पूजा करें और दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण कर अन्न जल ग्रहण करें।

समापन - 

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